प्रेम दीवाने जो भए, मन भयो चकनाचूर।

छकें रहैं घूमत रहैं, सहजो देखि हजूर॥

स्रोत
  • पोथी : सहजोबाई की बाणी - सहज प्रकाश (प्रेम का अंग से) ,
  • सिरजक : सहजो बाई ,
  • प्रकाशक : बेलडियर प्रेस, प्रयाग ,
  • संस्करण : सातवां संस्करण