प्रथम अंग सुन ऐकठे, फिर लख अलग अलग्ग।

जाके साधे सर्व ही, भव दुख जावे भग्ग॥

यंम नियम पद योग कै, दक्षिन भुज वैराग।

बांम पांन है साधना, आसन कटी सुभाग॥

प्रत्यहार लख उदर कों, प्रानायामह प्रांन।

जाको पूजे जोगिया, भव बंधन कर हांन॥

हृदय योग कों धारना, ध्यान सीस चित लाग।

हे समाधि वो मूद्धनी, जाको ले बड़ भाग॥

जीव सु आतम ग्यांन है, देह सु लिंग समेत।

कारन शब्द प्रकाश लख, भ्रमर गुफा कर हेत॥

कर्म भक्ती अनन्य कर, योग पुरुष कों पूज।

या से परै और को, अलख लखावन दूज॥

जे नर लख्यों योग कों, अवर मत्त चित्त चाय।

भ्रमे चोराशी के महीं, ज्यों जल समुद्र पाय॥

अलख नगर की राह कों, योग मार्ग शुध जांन।

अवर पंथ तें नां मिलै, पूरण ब्रह्म प्रमांन॥

योग मार्ग तें पार व्है, कयो कृश्न मोमत्त।

(अनेक जन्म सं सिद्धि स्ततो यांति परगत्त)॥

प्रथम पूज तूं योग पद, दश दश कर यम नेम।

यासें देव प्रसन्न व्है, सदा रखहिं तुज क्षेम॥

स्रोत
  • पोथी : गुमान ग्रंथावली ,
  • सिरजक : ठाकुर गुमानसिंह ,
  • संपादक : देव कोठारी ,
  • प्रकाशक : साहित्य संस्थान, राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर। ,
  • संस्करण : प्रथम