म्है नीचा भर धूड़ में, थै ऊंचा असमान।

अणचाया उड़ता रह्या, ज्यूं पतझड़ रा पान॥1॥

घर छूट्यां बदळी कियां, किणा नैं कहस्यां दौड़।

जोड़ तोड़ नह जाणस्यां, म्है पतझड़ री जोड़॥2॥

निमवा पाकी खीचड़ी, आंबै आया मोड़।

म्है पाकण आविया, इण पतझड़ नैं ओढ॥3॥

पूरा किया पचास नैं, चिंता भरी अनंत।

उमर थाकगी दौड़तां, अब पतझड़ रे पंथ॥4॥

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : जयसिंह चौहान ‘जौहरी’ ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन