पद-मंद पी मातो हुयो, चलै सीधी चाल।

ढाल बणै, राजी हुयो, सूंप्या खेंचै चाल॥

पद जद-जद रावण बणै, कटै बैन री नाक।

पाळ पाप री भावना, मिलै सदा री खाक॥

पद मन घण अवगुण बसै, गुण आंगळिये लेख।

वो सद वक, बायस वणै, करतब नित नव देख॥

पद तारक मारक सदा, रक्षक भक्षक दोय।

ना कर सोप दासता, अपणो आपो खोय॥

पद सूप्यां धूजै धरा, जग जन कर बेहाल।

हाथ धारै ढाल नित, ना छोडै करवाल॥

कैण, नैण पद धारकू, पल-पल बदळै रंग।

पग-पग नित न्यारा हुवै, चाल ढाल मत दंग॥

पद-पद रो नित सैण है, पद-पद रो मन मीत।

इण गत ना न्यारी हुवै, अंतर मन सद प्रीत॥

पद तन मन साची परख, हद सर हिवड़ै ज्ञान।

देख ही जाणै सकल, कुण शशि तारा भान॥

पद मुख ना वाचालता, रसना नित मधु बोल।

नैण निरख सुण कान दे, लेवै माणस तोल॥

पद राखै चेतन सदा, दोय नैण अरु कान।

पल में परखै समय नै, जोड़ आपणो ज्ञान॥

जद पद मद नातो जुड़ै, नेतो होय निहाल।

पण रैयत परवार सै, पल-पल होय बेहाल॥

पद संगत कर ज्ञान री, सरै सकल सद काम।

भोगै सुख जनता सदा, आप कमावै नाम॥

पद पग तळ घूमै घणा, डाकी चोर डकैत।

पण पद राखै समझ सूं, परख मनख मन हेत॥

नमै तणै रीझै खिजै, पद चित चेतो चेत।

सींचै फसलां गुण परख, नित खड़ीन अर खेत॥

पद-पद न्यारी चासणी, पद-पद न्यारा तार।

पद उर धर संयम सदा, लेवै काम सुधार॥

पद ऊपर नीचे घणा, पद धारक अणपार।

पर निज गुण रा धारकू, लेवै सकल संभार॥

पद जाणै चित चतुरता, मनखां मन री बात।

अंतस गहरो सोचनै, सरै नेह अर ख्यात॥

पद कितरो ओछो समझ, सक्यो कोई माप।

कद बण जावै नेवलो, कद बण जावै सांप॥

पद में अंतर मिळ-जुळ रवै, देव दनुज इक संग।

अवसर आयां जग दिखै, न्यारा-न्यारा ढंग॥

पद में राग मल्हार है, पद में दीपक राग।

कद बरसावै मेघ वो, कद चेतावै आग॥

पद हळको भारी बणै, कद सरतो घण मोल।

थाक्या ज्ञानी सुघड़ नर, सक्यो कोई तोल॥

पद अबखी सबखी करै, कद सुळझी उळझाय।

पैली में हरखे नहीं, दूजै ना सरमाय॥

पद में नित दोऊ बसै, वर देवण बळ आप।

ना बतळावै बात पद, किसो धरम अर माप॥

पद में तीनूं देव है, बिरमा विस्णु महेस।

कुण जाणै वौ कद बणै, तन रच रूप'र वेस॥

पद पचीसी जगत री, मांडी दीन दयाल।

पढ लिखसो मन बातड़ी, होसी जीव निहाल॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : अप्रैल-जून 2020 ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : मरुभूमि सोध संस्थान राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़
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