पद की रज तोरय, हो पत मोरय, है हर जोरय, आप हुतै।
चरखांनक नायक, हो वर दायक, हू तुज पायक, नंद सुतै।
भगता व्रतपालक, दूषन-टालक, मोमन घालक, आनबनी।
सरनांव्रद धारिय, दीन उधारिय, मो प्रतपारिय, रामधनी॥
ब्रज गोपक कारन, गोवर धारन, फेर ज्वलानल, पान कर्यो।
व्रत भीकम पारन, चक्र उपारन, आपक सोगन दूर धर्यो।
चमु आन परी करु खेत अरी, जब खेचरि देख पुकार भनी।
सरनांव्रद धारिय, दीन उधारिय, मो प्रतपारिय रामधनी॥
गजघंट उतार, क ऊपर डारक, पंखिन की उप, कार करी।
हर नाई भये पनवार दये पिस, वाई किये प्रभु, जाइ घरी।
धनजाट पुकारिये खेत निपारिय, कंकर डारिय, अंन बनी।
सरनांव्रद धारिय दीन उधारिय, मो प्रतपारिय, रामधनी॥
हर पूठ दिये रु, सुथार भये, भगती जन कारन, काज किये।
कब ईर पुकारिय, बाल दड़ारिय, आप पधारिय, बांट दये।
प्रभु प्रेम पिछांनि, क अंतस जांनिक, फेरिय थानिक, संत भनी।
सरनांव्रद धारिय, दिन उधारिय, मो प्रतपारिय, रामधनी॥
भगती ब्रत दायक, छीपक जायक, छांन छवायक, दूद पियो।
सुरदास चल्यो, चस्क सूल घल्यो झट, द्वारकदीसह, मूह कियो।
मग कै बिच आन, क आपन जान क, पंथ बतांनक, व्हे जुतनी।
सरनांव्रद धारिय, दीन उधारिय, मो प्रतपारिय, रामधनी॥
दसकंधर आयक, स्वान ज्यु जायक, सांग उपायक, सीत हरी।
खगराज विचारक, पंख पसारक, आय झुक्यो मनु, बीज परी।
घन चोट प्रहारिय, चंच जु मारिय, लंकपती हत, पाँख भुनी।
सरनांव्रद धारिय, दिन उधारिय, मो प्रतपारिय, रामधनी॥
रघुनंद पधारक संघट टारक, ज्ञान बढारक, मोख कियो।
गिनका व्रत ये, कहि सूख कटे कहि, गोविद ले खहि नाम लियो।
वयकुंठ पठाइय, संत जु गाइय, ना कुछ जज्ञ रु, बेद भनी।
सरनांव्रद वारिय, दीन उधारिय, मो प्रतपारिय, रामधनी॥
जयमाल की भीर, करी सुख सीर, समाधिक बीच म आप लखे।
पडियार चढ्यो गढ, आय मड्यो जह, बेर सवै जय, माल दखे।
कर बान दये, चकचूर भये सब, भाज गये जय, शब्द सुनी।
सरनांव्रद धारिय, दीन उधारिय, मो प्रतपारिय, रामधनी॥
मदिरा नित धारिय, माक्ष अहारिय, घोर अजामिल, दुष्ट भयो।
सुत कै हित कारिय, नाम पुकारिय, राम कह्यां निज, धाम गयो।
मधुदास क कारन, आप पधारन, पीर हरी निज चेरि बनी।
सरनांव्रद धारिय दीन उधारिय, मो प्रतपारिय, रामधनी॥
नरसी दुख टारन, ब्रद्दवधारन, रानि भये जल पानि दयो।
कय दारू छुराइय, माल पराइय, दुष्ट जनां भ्रम, भाजि गयो।
हरि यूं सुध लीजिय, जेझन कीजिय, मों गजराज सि, आनबनी।
सरनांव्रद धारिय, दीन उधारिय, मो प्रतपारिय, रामधनी॥