अब सत्ता में हो रह्या, नुवां-नुवां संजोग।
दल भी कपड़ां री रां, लग्या बदलबा लोग॥
होवै है ना शोरगुल, ना कोई आवाज।
जठै मूलधन सो रह्यो, परे बैठ्यो ब्याज॥
जब जिनगानी व्है ‘सजल’, इच्छावां रो खेल।
समझौता करनां पड़ै, सबी मेल अनमेल॥
अपणूं स्वारथ साधबा, सब दे र्या है घूस।
चाये भामासाह व्है, चायै माखी चूस॥
बहुमत पाकर लागगी, जिण लोगां रै पांख।
रह्या दिखाता वै सदा, संविधान नै आंख॥
सबका सब ढोंगी हुया, पंडा और फकीर।
दुर्लभ अब संसार में, दादू और कबीर॥
लोकतंत्र री नाव में, चढ बैठ्या सब लोग।
कुछ पाकर सहयोग तो, कुछ पाकर संजोग॥
राजनीति रा शिखर पर, है घोटाला बाज।
सज्जन हुया समाज में, गूंगा की आवाज॥
बस्ती सूं बाजार तक, हावी भ्रष्टाचार।
हर दफ्तर में उड़ रही, रिश्वत पंख पसार॥
लैला मजनू में कठै, पैलां जैसो मेल।
उतर गई है प्यार की, अब पटरी सूं रेल॥