निरधन नीची नाड़ है, का सेठां रो सत्कार।

सूरज रै सामै सदा, दिवळो है लाचार॥

स्रोत
  • पोथी : सूळी ऊपर सेज ,
  • सिरजक : कविता किरण ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन