मेदपाट महारांण री, होण दीधी हांण।

राड़ विचै पग रोपिया, मारकणै मकवांण॥

उसने(झाला मानसिंह ने) अपने मालिक महाराणा तथा मातृभूमि मेवाड़ को कोई हानि नही पहुँचने दी। अपने बड़े-बड़े सींगो से मार खदेड़ने को उद्यत किसी बलवान वृषभ की भाँति वह उस भयानक मारकाट के बीचो-बीच जा डटा॥

स्रोत
  • पोथी : नारायण-विनोद ,
  • सिरजक : नारायण सिंह जोधा