मंद हांस्य जानहुं प्रथम, अरु दूजौ कल-हांस्य।

होत तीसरौ हास्य अति, कहि चौथौ परिहांस्य॥

स्रोत
  • पोथी : नेहतरंग ,
  • सिरजक : बुध्दसिंह हाड़ा ,
  • संपादक : श्रीरामप्रसाद दाधीच ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ,
  • संस्करण : first