थूं संकर रै सीस पर,रूड़ौ करतौ राज

किम मिनखां रा पगलिया,थां पर पड़ग्या आज?॥1॥

चन्द्रमुखी बिलखी फिरै, बिलखा फिरै चकोर

कमोदणी कम्हलायगी, चलै किण रौ जोर॥2॥

पोल अपोलो खोल दो, चांदा थारी आज

तो चमचम चमकताँ, आवै थनैं नीं लाज॥3॥

म्है धरती रा मानवी, थूं सुरगां रौ देव

अमरा पुर में पूगणौ, म्हारी जूनी टेव॥4॥

जुग जुग सूं नह जांणियौ, थारौ अबखो ढंग

छेवट भेद उघाड़ियौ, रंग मांनखा रंग॥5॥

नह थें अहल्या नैं टगी, नह गौतम दीधौ स्राप

मरदां आज मेटा विया, थारा सगला पाप॥6॥

थूं इमरत री खांण है, इण में मीन मेख

म्हारै खातर भेज जे, इमरत बोतल एक॥7॥

थूं दरिया रौ दीकरौ, जबरी थारी जात

मिनखां आगै हारग्यौ, इचरज री बात॥8॥

आर्मस्ट्रांग धरती बसै, चंदा बसै अकास

जिणरी जिणसूं दोस्ती, वोइज उणरै पास॥9॥

मामा अर भांणेज रौ, सगपण जूनौ जाण

मन में रीस आण नै, इतरी पालै कांण॥10॥

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : नृसिंह राजपुरोहित ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन
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