सिर तावड़ तन साल्हवै, लागी लुवां लार।

पड़िया छाला पगतल्यां, मजदूरी री मार॥

माथै बोझ मजूरियां, करता दाकल काम।

झपड़ चौमासै जिया, चवै पसीनौ चाम॥

तन तपतौ तपती तिरस, भूख तपत भड़जाय।

तपती पांणी रोटियां, खिप्पत मजूरी खाय॥

कूंडा मांही कांकरा, ऊना बळै अनाप।

बळतै सिर पग बीणती, सुण कर रहिया कांप॥

हालत आई हांफणी, करै कुजरबौ काम।

तोख राखतां ही तळै धणी मजूरां धांम॥

थाकेलौ उतरै नहीं, सूतां तपती रात।

डील कुळ माथौ झुळै, ऊठंतै परभात॥

नाणा धोणा नी हुवै, दाणां री दिल दाझ।

बाटां जमगी मेल तन, खोरै नख सूं खाज॥

नहचौ नांही निबटवा, पेख सोरकौ पूर।

कुरळौ पांणी कर लहै, मूंडौ साफ मजूर॥

मंजण दांतण नी मिळ, नीं साबू नीं तेल।

कर धनिकां कठपूतळी, खलक मजूरी खेल॥

काच नहीं नीं कांगस्यौ, नहीं पाऊडर नांव।

भर जोबन में भूलगौ, अंग मजूर उछाव॥

सांसो तन मन सोरकौ धन रौ रहै विजोग।

अन री चिंता आवगी, जूण मजूरी जोग॥

आफळ खिपतां कळपतां, दीह देनगी जाय।

खपतौ जीवण ना खुसी, मुलक मजूरी मांय॥

कांयस निसदिन कामणी, होवै कोकळा हूंत।

ठोला दै भर चूंटिया, और भचेड़ै ऊत॥

तीज तिवारा वापरै, घिरत वनापत गेह।

पड़िया कित छै पीण नै, दूध मजूरां देह॥

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : लक्ष्मणदान कविया ,
  • संपादक : डॉ. भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थान साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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