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अंजस सोशल मीडिया
मांखी देखत घाव कूं
उम्मेदराम बारहठ
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मांखी
देखत
घाव
कूं,
दुरजन
दोष
समूल।
सज्जन
जन
देखत
गुननि,
मधुकर
देखत
फूल॥
स्रोत
पोथी
: भाषा चाणक्य (उम्मेद ग्रंथावली)
,
सिरजक
: उम्मेदराम बारहठ
,
संपादक
: मंजुला बारैठ
,
प्रकाशक
: कलासन प्रकाशन, बीकानेर।
,
संस्करण
: प्रथम