धन्य धरा गुजरातनी,चरोतरी है धार।

'झवेर' घेरे जनमिया,लोखण्ड़ी सरदार।

'लाड़कबा' ना लाड़का,लीलूडी लटकार।

कामणगारू करमसद,लोखण्ड़ी सरदार॥

कद-काठी मजबूत'ती,आँखे पाणीदार।

भारत माँ ना लाड़ला,लोखण्ड़ी सरदार॥

उजळा वस्तर प्हैरता,उज़ळा हता विचार।

बंडी झब्बो धोतियू,लोखण्ड़ी सरदार॥

रजवाडी हमजाविया,एका नो टणकार।

संघ करी भेळा किदा,लोखण्ड़ी सरदार॥

साम दाम नै दंड थी, चारी मेरे वार।

धार्‌यू काम करी लिदू,लोखण्ड़ी सरदार॥

जूनागढ़ नै झूटवी,हैद्राबाद सवार।

पोर्‌या मणका हार मँय,लोखण्ड़ी सरदार॥

हिम्मत ना हौदा घणा, दगाबाज पर वार।

अखण्ड़ कीधौ देस नै, लोखण्ड़ी सरदार।

जब्बर सांची सूझ थी, माथे लीधो भार।

देस नमै है आपनै,लोखण्ड़ी सरदार।

स्रोत
  • सिरजक : आभा मेहता 'उर्मिल' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी