कृपाल आपको प्रताप पार नाहिं जानहू,
अनूग्रहज्जु आपकी कछूक मैं बखानहू।
तुपक्क हात ज्ञान कों सदाजु आप धारिकै,
दयो ढहाय पील ही अशुद्ध भर्म मारिकै॥
सचाह रूप बाज को सुपान ले दपट्टयं,
कपट्ट कू कोड़ चपट्ट दौड़ कै झपट्टयं।
मदंन आप बारयो सुसील आग जारकै,
मनो महेश काम को भसंम कीन धारकै॥
सथोक सांग धार आप मार क्रोध को,
जनो दिनेश रामचंद्र पार कुंभ जोध को।
तवल्ल साध त्याग को जु लोभ मुंड तोरयो,
विचार सार धार कै अहं जु फौज मोरयो॥
बिराग चांप तान कै दृढ़ं जु बान छोरयो,
प्रतक्ष सृष्ट देखतां बमोह सीस तोरयो।
अहो दयाल मोर नाथ आप स्तूति का करूं,
चरंन बीच नाय सीस पान जोर कै परूं॥
भवाब्धि बीच डूबतां बचाय मोहि लीजिये।
दुखित्त पूर जानि के कृपालु पार कीजिये॥