जोधनगर के निकट हो, सालावस इक गाम।
ताको स्वामी राष्ट्रवर, आसकर्ण जिहिं नाम॥
महाराजा जसवँत को, हो सच्चो समान्त।
सद्गुन सों बोलत हते, याको कीरतिवन्त॥
रण पंडित अरु भक्तिवर, वीर गुनन आगार।
महाराजा जसवँत को, बहुत भरोसावार॥
आसकर्ण इक समय महँ, गयो सिब्धी कउ गाम।
तामें इक कन्या सुनी, रूप-पराक्रम-धाम॥
यह मांगलिया गोत्र की, साधारण गृह जाम।
सुनत प्रशंसा मुग्ध भो, आसकरण अभिराम।
पहिले द्वै तिय रहत पुनि, तासों करिय विवाह।
और कछू कारण नहीं, वीर पुत्र की चाह॥
समय पाय ता कुक्षि तें, जनम्यो दुरगादास।
मातृ-भूमि को सुघर सुत, कुल करणोत उजास॥
सोरह सौ पच्चानुवे, विक्रम संवत् जाम।
श्रावण शुक्ला चतुर्दशी, सोमवार दिन मान॥