इक तरु सूके की अगनि, बारत सब बनराय।

यूं ही पूत कपूत तें, वंस समूल नसाय॥

स्रोत
  • पोथी : भाषा चाणक्य (उम्मेद ग्रंथावली) ,
  • सिरजक : उम्मेदराम बारहठ ,
  • संपादक : मंजुला बारैठ ,
  • प्रकाशक : कलासन प्रकाशन, बीकानेर। ,
  • संस्करण : प्रथम