मरवण झुर्‌र री सेज म, आंसूड़ा ढळकाय।

रोहिड़ां फूल आय ग्या, साजनियो कद आय॥

पिया बसै परदेसां म, हिय बळ म्हारे आग।

अब तो आवो सायबा, खेलण म्हा स्यूं फाग॥

होळी आई सायबा, खेलां रंग गुलाल

परदेसी की गोरड़ी, मन मे करे मलाल॥

भीगे सखियाँ संग पिया के, मैं भीजूँ कि संग

आय लगाओ सायबा, म्हारे होळी रा रंग॥

चुनड़ भीजे, कुरती भीजे, भीज गई सारी

आय निरखो थे सायबा, थारे फूलां री फुलवारी॥

जोबन झोला मार रयो, छाती फाटी जाय

परदेसी समझे नही, जोबन फेर आय॥

फागण री उडिक ढोला, हियो कर थां संग

आय मारू रे देश म, निरखो कसुमल रंग॥

सखियाँ होळी खेल रही, झुर्‌र री घर माय

म्हारी होळी सायबो, कद खेलेगो आय॥

नहीं पधार् यो सायबो, उडीकूं होळी ताय

जे अबके आयो तो, कूद बळू ली माय॥

गोरी जोई बाट घणी, गया भंवर जी आय

फागण होळी खेल के, मन री प्यास बुझाय॥

होळी माता धन तनै, सायब जी घर आय

बड़ कुला री माळा करु, खीर चूरमो चढ़ाय॥

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : अनूप सैनी 'बेबाक' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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