हर्ष देखि मुळकै नहीं, आंख्यां नांहि नेह।

मतलब यों झूठो फिरै, धन गरजन ना मेह॥

मुख पड़ियां मीठो बणै, पीठ पछै में खार।

हर्षा तज व्यवहार सै, मतलब री मनवार॥

सांची मन मानै नहीं, जब लगि मन में चोर।

मैं वा सूं सांची कहूं, वा समझे कुछ और॥

पाप पेङ फूलै घणूं, फूलै घणूं दुखाय।

खायां अति मीठो लगै, अंत जैर हो जाय॥

मरजादा री पगड़ी, नैणां आजी लाज।

ऊंच नीच नीं बोल, में प्रीति सारे काज॥

नित उठ कूंतो ना सखा, आपणै जो नर नार।

बणी सराज्ये टेम पै, देख रीत संसार॥

दाता री सै जय करै, आदर भय बलवान।

हर्षा साथी दीन रा, स्वजन और सुजान॥

नैण सैण रा पारखी, नैण नैण बतळाय।

जिण नैणां पाणी नहीं, हर्ष गांव बताय॥

चुगलखोर चुगली करै, नैणा करता सैंण।

मूंड भिड़ाई वा करै, झूठा सांचा वैण॥

चौखै दिन में चैन सूं, हर्षा भल मति आय।

दुर्दिन आये रावणां, सीता हरणै जाय॥

जां के मन पीड़ा रही, समझै पीड़ा भाव।

नांहि समझै कुटिल जन, बेसी देवै घाव॥

हर्षा गरब कीजिये, घणा होय तैराक।

डूब मरै जल मांहि वै, जां री जग में धाक॥

काठी रै दीमक लगी, माटी करती जाय।

काळ चपेटै सैं अठै, करलै दो दिन मांय॥

स्रोत
  • पोथी : बिणजारो 2016 ,
  • सिरजक : हरदान हर्ष ,
  • संपादक : नागराज शर्मा ,
  • प्रकाशक : बिणजारो प्रकाशन पिलानी