ग्रसण चहै अकबर मगर, मैंगळ धर मेवाड़।

वारू आजे विसन ज्यूं, मांना फौजां-फाड़॥

मेवाड़ की भूमि उस गजराज के समान है जिसे अकबर रूपी ग्राह अपना ग्रास बनाना चाहता है। फौजों को फाड़ने में समर्थ हे वीर झाला मान, तुम विष्णु की भाँति उसकी सहायता करने शीघ्र आना॥

स्रोत
  • पोथी : नारायण-विनोद ,
  • सिरजक : नारायण सिंह जोधा