पीळी चूंदड़ ओढ़ कै, गोरी ऊभी खेत
गोरो मुखड़ो देख कै, उपजै हिवड़ै हेत॥
घरणै बैठी गोरड़ी, कर सोळा सिणगार।
मूंडै झीणी ओढणी, करे निजर सूं वार॥
चमचम चमकै बीजळी, काळा बादळ मांय।
गरज्या बादळ जोर सूं, गोरी मन घबराय॥
पाणी में छब देखती, गोरी भाव विभोर।
ओळ्यूं आवै पीव की, कठी गयो चितचोर॥
गोरी घूमै आंगणै, मेंदी हाथ रचाय।
पांवां बाजै घूघरा, पायलड़ी छणकाय॥
गोरी ऊभी आंगणै, दरपण हाथां मांय।
चेरो दरपण निरखती, मनड़ौ छै मुसकाय॥
गोरी रो मुख चाँद ज्यूं, मेंदी राच्या हाथ।
माथै पै टिकलो सजै, बैठी पी कै साथ॥
गोरी बैठी रुस कै, कस्यां करां मनवार।
घर संदो सूनो पड्यो, फीका छै तेवार॥
गोरी सबकी लाड़ली, मीठा बोलै बोल।
पेल्या हिवड़ै तोलती, जाणै बोल अमोल॥
बाट निहाळे पीव की, गोरी छै घबराय।
जाय बस्या परदेस में, कदै मलेगा आय॥