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घाटि बाधि तुक झड़ि बणी
रूपदास
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घाटि
बाधि
तुक
झड़ि
बणी,
मो
मति
सारूं
आय।
आत्माराम
लघु
भोलिकी,
चुक
बकसि
दे
माय॥
स्रोत
पोथी
: श्री रामस्नेही - संदेश संत सप्तक (मुक्तिविलास कृति से)
,
सिरजक
: रूपदास जी
,
संपादक
: ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल
,
प्रकाशक
: श्री रामस्नेही- युवा -संत परिषद्, रामनिवास धाम, शाहपुरा ( भीलवाड़ा)
,
संस्करण
: प्रथम