छप्पनै पछै तौ छिन्नवौ,
पचीसौ अर छाईस।
चिड़ियानाथ री चूक सूं,
काळ झाल ली ईस॥
कै तौ लागै मेह झड़,
कै नहरां आवै नीर।
माटी धापै मुरधरा,
काळ समंदरां तीर॥
स्रोत
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पोथी : रेवतदान चारण री टाळवी कवितावां
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सिरजक : रेवतदान चारण कल्पित
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संपादक : सोहनदान चारण
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प्रकाशक : साहित्य अकादेमी
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- संस्करण : प्रथम संस्करण