ज्यो जींकी संगत करै, सीखै ही पाठ।

नीम करेलो जा चढै, दूणी हो कड़वाठ।।

गुण लेबो ही सार छै, गुण सूं आदर होय।

गुण ले ओशध नीम का, नीम गिलोई होय।।

सरकण्डा सूं जद हटै, पानड़ अर अळ्योह।

जद बण पाव छाजळो, होये धान सळ्योह।।

पीहर डूंगर उतरती, नदी वेग बिकराल।

मैदाना में पूगतां, होती मंथर चाल।।

जद खुद को हो आचरण, दूजां पड़ै प्रभाव।

ज्यो खुद मीठो दगळता, गुड़ नीं सकै छुड़ाव।।

छोड़ पीहर की रीत नै, ढळी रीत ससुराल।

समदर मिल खारो हुयो, नदियां जळ यो हाल।।

असर करै घटना सभी, हो दूरै या पास।

आभै चमकै बीजळी, धरती पड़े प्रकाश।।

झालो देकर हाथ सूं, बडो कर्यो परभात।

धन बलिदानी दीप तू, बळियो सारी रात।।

दीपक सूं लड़ती रही, संझ्या सूं परभात।

जद सूरज पूरब उग्यो, पछिम भागी रात।।

सूरज मा झोळ्यां गियो, दीपक नै संभळार।

तू ही बेटो धरम को, करजै जग उजियार।।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : जयसिंह आशावत
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