ईं दुखिया संसार में, घणकर आंख्यां नम्म।
दूजां को दुख देखतां, खुद को होवे कम्म।।
करम करै ना अेक भी, मांगै तीज त्यूंवार।
वे जग कोरा जीवता, मनख जूण बेकार।।
सब बाधा दूरै हटै, ज्यो जी मं ले धार।
करणू ज्यो भी काम छै, कदै‘न छोड उधार।।
बातां तो सतरा करां, करम करां नहीं अेक।
पण दूजां का काम में, काढां मीन ‘र मेख।।
लेबो-देबो जगत में, छै बोपारी भाव।
लेतां तो सुख मानता, देतां क्यूं दुख पाव।।
ठोकर खा कर पड़ उठै, सोधै अपणी भूल।
ठोकर खा ज्यो संभळज्या, महकै जाणै फूल।।
वेद व्यास जी ने लिख्यो, सब ग्रन्थां को सार।
पर पीड़ा तो पाप छै, पुन्न छै पर उपकार।।
क्यूं’र दुखावो आतमा, दे सको तो साथ।
जाणबूझ तो मत धरो, दुखती रग पै हाथ।।
दृढ़ता निज मन धार कर, करता काज प्रयाण।
धीरज सागै पग धरै, वानै जीत्यो जाण।।
सोच समझ आगै बधै, संभळ धरै हर पांव।
वे ही मंजिल पूगता, ऊंचो करता नांव।।