दारू आवै देहरी, जम जावै जिम जाळ।
पैठ उडावै पीवतां, बंतळ उडीकै बाल॥
पीता देख्या पाविया, रळता देख्या रेत।
मिनख जमारै मानखा, चेत सकै तो चेत॥
दारू दूर इ राखणों, नहीं लगाणो नेह।
अन्न,धन्न अर आबरू, सांप्रत होवै छेह॥
नीं पिंया नीं पाव स्यां, सैणां दारू छाक।
पलकां बैसौ पावणां, लुळ-लुळ निंवण लाख॥
दारू पीवै दोजखी, घर में कर घमसांण।
बिलखै टाबर बापड़ा, पापी थारै पांण॥
वाटां थारी जोवतां, रीतै आधी रात।
आवै झूला झूलतौ, गिंधै सारौ गात॥
इज्जत जावै आवगी, मिनख न देवै मान।
दारू वाळै दाग सूं, सांप्रत जावै श्यान॥
मिनखां जावै माजणो, मिट्टी सम तव मोल।
बीत्यौ जोबन बेलिया, अब तो आंख्यां खोल॥
दारू पी नैं दैण दै, बड़का बोलै वैण।
रैण-दिवस रोळा करै, सरकै आगा सैंण॥
सुध रेवै नह साथियां, ढमकै होज्या ढेर।
आंगण में आळोटतै, कूकर पूछै खैर॥
वार-वार मम वीणती, सुणजौ म्हारा सैंण।
अंग सूं आगौ राखजौ, दारू मोटो डैंण॥