लोग जांणै कायदा, ना जांणै अपणेस।

रांम भला ईं मौत दै, मत दीजै परदेस॥

भांत भांत री बात है, बात बात दूभांत।

परदेसां रा लोगड़ा, ज्यूं हाथी रा दांत॥

सुस्ता ले मन पावणा, गांव प्रीत री पाळ।

मिनख पणै रै नांव पर, सहर सूगली गाळ॥

सहर डूंगरी दूर री, दीखै घणी सरूप।

सहर बस्यां बेरौ पड़ै, किण रौ कैड़ौ रूप॥

खाणौ पीणौ बैठणौ, घड़ी नहीं बिसरांम॥

बौ जावै परदेस में, जिण रौ रूसै रांम॥

अजब रीत परदेस री, अेक सांच सौ झूठ।

हँस बतळावै सामनै, घात करै परपूठ॥

लेग्या तौ हा गांव सूं, कंचन देही राज।

पाछी ल्याया सहर सूं खांसी, कब्जी, खाज॥

लोग चौकसी राखता, खुद बांका सिरदार।

बांकड़ला परदेस में, बणग्या चौकीदार॥

गळै मसीनां में सदा, गांवा री सै मौज।

परदेसां में गांगलौ, घर रौ राजा भोज॥

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : भागीरथ सिंह भाग्य ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन