प्रथम टाळ गण दोख, पछै परहरि दध अखर।

हज धर घण खंभ अेह, प्रथम मांणै अठ अखर॥

जीव आणि अति जुगति, सुद्रढ झड़ वैण सगाई।

भाव चाव बह भत्ति, करै गुण जास कमाई॥

बिगताई लघु दीरघ वयण, इमरत रस वाणी सहित।

कवि नागराज पींगल कहै, करि विचार बांधो कवित॥

हहौ करै घण हाणि, ररौ काइ व्याधि उठाड़ै।

जजौ करै जस घात, भभौ भावठि भमाड़ै॥

खखौ खत खइ करै, धधौ धर धोरी नांसै।

घघौ करै घण घाव, ननौ नर दुख्ख विणासै॥

अठ अेह अखर निबळ अंगै, कवित गीत धुर नांणियै।

कवित्त अेह पींगल कहै, सो जे षट बंधव जाणियै॥

मगण तीन गुर करै, अण लहु धुर धुर दीजै।

बिच लहु रगण प्रमाण, अंत गुर सगण कहीजै॥

छेह लहु कहिजै तगण, मधि गुर जगण बखाण।

धुरि गुर भणियै भगण नगण लहु तीन सु जाण॥

आदि अंत दोइ दोइ करो, गाह गीत छंद परहरौ।

सरब गुर चंगे अखरै कवि, कवि धरम समंधरौ॥

मगण लख थिर व्रंध, अगण सुख संपति अखै।

रगण मरण ऊपजै, सगण परदेसां नखै॥

तगण सु निरफळ देख, जगण गण रोग पयासै।

भगण चवै मंगळ अनेक, अेह गुण पींगल भासै॥

जिण गीत गाह दूहो कवित्त, नगण होइ पढ अखरै।

कवि जास असंपढ संपढ, संपढै रिण रावल दूतर तरै॥

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत मई 1995 ,
  • सिरजक : सौभाग्यसिंह शेखावत ,
  • संपादक : गोरधन सिंह शेखावत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर