हाडां चिपगी चामड़ी, नहीं मांस को नांव।
चेहरै पर झुरियां पड़ी, नहीं जीव नै ठांव॥
भूत याद ताजा हुई, आज याद कमजोर।
खायोड़ो नी याद रै, चलै नहीं कोई जोर॥
आख्यां सूं ओझल हुयो, सतरंगी संसार।
बोली सूं बेरो पड़ै, असी करी करतार॥
सुणबा में बारा बजी, हेलो सुणै न एक।
कड़वो सुणबो लाजमी, ईशर राखै टेक॥
रीळां चालै हाडक्यां, कीकर छूटै खोड़।
ऊमर बीती दौड़ता, बची आखरी दौड़॥
बेटो भी बांथ्यां पड़ै, आंख दिखावै जोर।
समझै नीं ईं बात नै, आवै काल ओ दौर॥
बचपन संगी साथ घणो, जवानी मीठा बैण।
बुढ़ापै के बजराक पड़ी, नहीं नैण नहीं सैण॥
मूंडै पर झुरियां पड़ी, धोळा हुग्या बाळ।
कड़तू झुक बांकी हुई, डरपै बाल गोपाल॥
मिनख बणै अण खावणो, जायां साठी पार।
बात बात बटका सह्वै, तीर काळजै पार॥