संकल्पां रै हाथ रो बणज्या थू औजार।
विपदा सारी काट दे. साहस रा हथियार॥
सिंहासन रै माथै बैठ, राज करै अन्याय।
आंसू नै कै दिन मिल्यो, मुसकाना सूं न्याय॥
पीड़ा, पर्वत, पालकी सैं को अपणो रंग।
लेकिन मानव हो रैयो, सांपां सौ बदरंग॥
माचिस बण बळती रैयी, रिस्ता री पहचान।
अपणायत अब होय रैयी, मतलब री दुकान॥
मन रै बिछावण सूयगी, दुराचार री नार।
सोक्यूं अब बिकतो फिरै, बण कर के व्यापार॥
सांच खड़ी धूजै घड़ी, झूठां रै दरबार।
कुकरमा री कै चियां बण बैठी तलवार॥
न्याय बिचारो रो पड्यो, इतणी खाई चोट
मन चाही अब चाल रैयी करै फौसला नोट की॥
माटी में दोन्यू मिले, साहजी अर फकीर
सूकरमां री चादणी, हरदम रेवै अमीर ॥
उजड़यै नैं सुंवार दै जद जाणैगा लोग।
भेस बदळकर घूम रैया गळी-गळी में ढोंग॥
साहस अर विश्वास सैं जिण रो भयो शरीर।
अड़ा वीरां ई सदां बदळी है तकदीर॥
रूप नवैली डाळ को मौसम करग्यो चूर।
भयै बाग चोरी हुयो, हरियाळी रो नूर॥
आंसै- बांसै कै मिटै स्वाभिमान री आन।
हरजुग में हो तो रैयो, सरजक रो सन्मान॥