बावन अक्षर बाहिरो, पहूंचे ना मति दास।

सत गुरू की किरपा भये, हरि पेखे पूरन पास॥

स्रोत
  • पोथी : गवरी बाई (भारतीय साहित्य रा निरमाता) ,
  • सिरजक : गवरी बाई ,
  • संपादक : मथुरा प्रसाद अग्रवाल ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम