वारह विउणा जिण णवमि किय वारह अक्खरकक्क।

महयदिण भवियायण हो, णिसुणह थिरमण थक्क॥

भवदुक्खह निव्विणएण, वीरचन्द सिस्सेण।

भवियह पडिवोहण कया, दोहा कव्व मिसेण॥

अेकु या रुष शारदुइ तिन्निवि मिल्लि।

चउवीस गल तिण्णिसय, विरइए दोहा वेल्लि॥

तेतीसह छह छडिया, वीरइय सत्तावीस।

वारह गुणिया त्तिण्णिसय, हुअ दोहा चउवीस॥

सो दोहा अप्पाणयहु, दोहो जोण मुणेइ।

मुणि महयदिण भासियउ, सुणिवि चित्त धरेइ॥

किजइ जिणवर भासियऊ, धम्मु अहिंसा सारु।

जिम छिजइ रे जीव तुहु, अवळीढउ संसारु॥

खीरह मज्झह जेम घिउ, तिलह मज्झि जिम तिलु।

कटि्ठहु वासणु जिम वसइ, जिम देहहि देहिल्लु॥

दमु दय नजमु णियमु तउ, आज मुवि किउ जेण।

तासु मर तह कवण भऊ, कहियउ महइंदेण॥

दाणु चउविहु जिणवरह, कहियउ सावय दिज्ज।

दय जीवह चउसघहवि, भोयणु ऊसह विज्ज॥

पीडहि काउ परीसहहिं, जइण वियभइ चित्तु।

मरणयाळि असि आउसा, दिढ चित्तडइ धरतु॥

फिरइ फिरकहिं चक्कु जिम, गुण उणलद्धुस लोहु।

णरय तिरिक्खहिं जीवडउ, अमु चतउ तिय मोहु॥

बाल मरण मुणि परिहरहिं, पडिय मरणु मरेहिं।

वारह जिण सासणि कहिय, अणु वेक्खउ सुमरेहि॥

रूव रस गंध फसड़ा, सद्द लिंग गुण हीणु।

अछइसी दहे डि यसउ, घिउ जिम खीरह लीणु॥

जो पढ़हि पढावइ संभळइ, देविणु दवि लिहावइ।

महयदु भणइ सो नित्तुलउ, अक्खइ सोक्खु परावइ॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के जैन संत: व्यक्तित्व एवं कृतित्व ,
  • सिरजक : मुनि महनन्दि ,
  • संपादक : डॉ. कस्तूरीचंद कासलीवाल ,
  • प्रकाशक : गैंदीलाल शाह एडवोकेट, श्री दिगम्बर जैन अखिल क्षेत्र श्रीमहावीरजी, जयपुर