बळबळती दोफैर में, कर र्‌या काम मजूर।

जीवण का फेर में, संदा छै मजबूर॥

आंख्या म्ह चंता धसी, मूंडौ ग्यो कुमळाय।

रोठ्यां का है फेर में, जीवण बीत्यो जाय।

धरा तुआ ज्यूं तप उठी, जेठ दुपेरी मांय।

इन्दर राजा बरस ज्या, क्यूं मनड़ौ तरसाय॥

घणी जोर को तावड़ो, धरती हो गी लाल।

सूख्या संदा रूँखड़ा, सब जण छै बेहाल॥

आंधी चाल्यी जोर की, शोर मच्यो चौमेर।

उखड़ गया सब रूँखड़ा, जरा लागी बेर॥

लाल रंग की ओढ़नी, साजण के मन भाय।

मुखड़ो भीतर चाँद ज्यूँ, मन नै घणो लुभाय॥

तपता बैसाख में, लोग घणा बेहाल।

पत्तो कौने रूँखा पै, साफी बणगी ढाल॥

बळबळती दोफैर में, राता हो ग्या गाल।

पंछी ढूंढे छांव नै, मनख पसीनो भाल॥

सूरज तप र्‌यो रोस सूं, कांईं करां उपाय।

सूख्या हरिया रुँखड़ा, सूझै कौने कांय॥

टाबर सूतो झोळी में, खाडा खोदे माय।

बैरी बण ग्यो तावड़ो, कांईं करां उपाय॥

स्रोत
  • पोथी : सबद निकाळो तोल ,
  • सिरजक : अनिता वर्मा ,
  • प्रकाशक : सूर्य प्रकाशन मन्दिर, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण