ऐसी तो बिन कुण करै, राज विना रुघुबीर।
दुरबळ दीन अनाथ की, भली करी तुम भीर॥
चक्र तांतू छेद कै, खंड खंड कर ग्राह।
राख लियौ गजराज कूं, को कर सकै सराह॥
हरि कुंजर वंदन करै, नमण करै कर भाय।
महाप्रभु कुण राज विण, मेरी करै सहाय॥