आगी आखातीज जी, सावा घणा अबूझ।

मत परणाओ टाबरां, काम करो थै बूझ॥

आगी आखातीज जी, घणा मंड र्‌या ब्याव।

सम्मेलण की धूम छै, तण र्‌या तंबू गांव॥

नुक्ती पूड़ी सेंव बण्या, खरबूजा की स्याग।

जोड़ा परण्या स्यान सूं, जुड़ग्या वांका भाग॥

ढोल बाज र्‌या जोर सूं, गूंज्या मंगल गीत।

मंडप सज र्‌या स्यान सूं, या छै अद्भुत रीत॥

नूत्यां गणपत दैव नै, ब्याव रौप द्यो आज।

बैगा आओ दैव थै, संवरै संदा काज॥

आगी आखातीज जी, सावा की छै धूम।

खुशियाँ बरसी आंगणै, मनड़ौ नाचै झूम॥

खूब जिमावै पावणा, घणो करै सनमान

प्रीत भाव मनड़ै बसै, म्हारै राजस्थान॥

स्रोत
  • पोथी : सबद निकाळो तोल ,
  • सिरजक : अनिता वर्मा ,
  • प्रकाशक : सूर्य प्रकाशन मन्दिर, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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