सकती बहू कहै सासूजी, अतरां कांई उदासी।

कंथा तणो भरोसो मौनैं, वे कुसळां घर आसी॥

अड़तां लार भागतां आगै, बातां घणी बणासी।

बागां खाग नणद रा वीरा, आगे भाग’र आसी॥

ससतर श्याम दै आया सारा, कपड़ा बीच खुसाया।

तो बात करे छी आगै, अतैं उघाड़ा आया॥

महीना नौ राख्यो उर मांही, आगम बातां आची।

कहती जिसो तिहारो कंथो, सांची बहू सांची॥

स्रोत
  • पोथी : मध्यकालीन चारण काव्य ,
  • सिरजक : बना बारहठ ,
  • संपादक : जगमोहन सिंह ,
  • प्रकाशक : मयंक प्रकाशन, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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