पाताळ तठै बलि रहण न पाऊ
रिध मांडे त्रण करण रहै।
मो म्रितलोक रायसी मारै,
कठै रैऊं हरि दळद कहै॥
वीरोचन-सुत अहिपुर वारै,
रवि-सुत तणो अमरपुर राज।
निध-दातार कलाउत नरपुर,
अनंत रोर-गत केही आज॥
रयण दियण पाताळ न राखै,
कनक व्रवण रूधो कविळास।
महि पुड़ि गज दातार ज मारै,
विसन किसै पुड़ि मांडू वास॥
नाग अमर नर भुवण निरखतां,
हेक ठोड़ छै कहै हरी।
धर अरि रायासिंघ घातिया,
कुरिध तठै जाइ वास करी॥