मोरो मन माधवे लागौ, मदसूदने मुरारे,
नारायणे रामे नरसिंघे, दामोदरे दातारे।
सतीभामा रामा हित संगे, सामी रुद्र वंभे,
वर सीत दे रुखमणी, विंदलिखमी, वालंभे।
धरणीधरे धरा दढ धारे, हरे पदम चक्र हाथे,
संक रखणे साईये सेखे, जळ साईये जगनाथे।
लंका लिय सा नवे ग्रह छोडण, नाथण अहि वह नामे,
रामण तणा दसै सिर छेदे, श्री रंगे श्रीरामे।
केसवे कृसने कल्याणे, कंस मारणे क्रपाले,
वेय उधारण वामणे विसने, बिठूले वनमाले।
सामल ब्रने पीत सिणगारे, अहि नाथणे अपारे,
‘आसा’ सामि बलाक्रम अद्भुत, अबंर धर आधारे॥