सघण स्वै धन बल दामण खिमण रा सोभत,

वण धरा हरी पोसाक छिब वेस।

छत्रपति मान रै नाथ सुनिजर छजै,

दीप जम्बू सिरै मुरधरा देस॥

त्रण कुसुम सुगधयी लता तरवरां,

छौल जल सरां नद तटां छाजै।

महिपती मांन रौ मुलक सिध पतमया,

रुति बिरखा प्रथी सिरै राजै॥

मधुर घण गरज दादुर कुहक मयूरां,

उर हरख क्रसी करसणां आसै।

कमंध नरियंद रै दिपै जोगिन्द कपा,

मनोहर नर समंद चत्रमासै॥

पाविया नाथ वर वर सही रा न्मै पद,

थिर प्रभा लही रा जोघगढ़थांन।

छत्रां साध मोद त्रिलसण रुतां छही,

मही राजंद अविचलन तपो माँन॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी साहित्य सम्पदा ,
  • सिरजक : चैनकर्ण सांदू ,
  • संपादक : सौभाग्य सिंह शेखावत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य संगम, बीकानेर। ,
  • संस्करण : प्रथम