मन में हद गरब छदम छल़ मांटी

जोर गूंथवै जाल़ा।

चंदण तणा तिलक हद चरचै,

मुदित रखै कर माल़ा॥

धूरतपणो धीठता धारी,

करम किताई काल़ा।

लोक मांहै आंनै लुकावण,

मगरीजै रख माल़ा॥

ठगपण तणी हाटड़ी ठाई,

चित बुगलै रा चाल़ा।

चादर ओटै खोट छिपायर,

मुलक दिखावै माल़ा॥

तीरथ दिसा ताकड़ो तणतण,

पत्थ हल्लै फिर पाल़ा।

मात-पिता री टेक मानै,

मतहीणा ले माल़ा॥

खोट कमाई भरै खजाना,

तिणरै दे फिर ताल़ा।

गीता वाल़ो ग्यान बगारै,

मँझ जाजम पर माल़ा॥

कांकण धार नेम फिर कीधो,

उर में ताकत आल़ा।

ऊंदरियां नै खाड उतारण

मनकी जापै माल़ा॥

छांना नाय हरि सूं छलबल़,

टाल़ै वो टाल़ा।

गिरधरदान साच बिन गैला,

मान अलूणी माल़ा॥

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणयोड़ी ,
  • सिरजक : गिरधर दान दासोड़ी