पैहरण जो मिळत मिळत नह पनगी, ठाकर घणां पड़’ती ठीक।

खाई घाल घणां घर खाँचे, लाई धांन कठा सूं लीक॥

काया केस उघाड़ा कीधां, करता सपथ सोगरा काज।

दस-दसकळी जिकांने दीना, नीर उहाळां मांझ अनाज॥

दीवाळी होळी नह दीठौ, अन रौ धरौ जकांरै ओक।

कहता फिरै जिकांने कायब, लीक प्रताप कवेसर लोक॥

फोगी असल अकल रा फीटा, दीठा म्है मणियड़ रै देस।

अभरी किया जिकां नै आवे, अगलूंणी लूंणी आदेस॥

स्रोत
  • पोथी : दरजी मयाराम री बात ,
  • सिरजक : बुधजी आशिया ,
  • संपादक : शक्तिदान कविया