कळु कविता जाय सुरण में कूकी,

करड़ी दसा भई किरतार।

ताकद विप्र गुणिजण त्यागी,

भया मूंढ गाफिल भरतार॥

करूण कथा माधव लख कांनो,

मांनो अरजी किसन मुरार।

मांडे रोड दई अण माहिर,

लुच्चा ले लठ पड़ग्या लार॥

आभूषण बिन फिरू अडोळी,

हमजोली रहिया नहीं हाय।

भोळी भोळी कर भटकावें,

अणतोळी लेवे अपणाय॥

दध आखर नह समझे दूसट,

दोष गिणे नहीं दीन दयाल।

गले विडार दिया घण मुक्तक,

भगवत किया घणा बेहाल॥

कान्ह कान दे सुण करुणाकर,

मांन मांन अरजी मां बाप।

जाण तिहारी जगजस बरणी,

आखिर आण करो इनसांफ॥

स्रोत
  • सिरजक : मोहन सिंह रतनू ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी