गजदंता परै फूटै गजकेसरि, गज चै कमळ पंडंतै गाढ।

जादव मांहि थकै जंम दाढां, “जोगै” बाही जमदाढ॥

गोइन्द-उत दाखवै गाढिव, दंत दूवा सूं थकै दळ।

काळ तणै वसि थिये कटारी, काळ तणै वाही कमळ॥

भांगै डील भलो राय भाटी, कुंजर धकै भयंकर काळ।

आयै मुख राणा अंतर, मुख जम तणै जड़ी प्रतमाळ॥

आधंतर काढै अणियाळी, कूंभाथळ वाही कर क्रोध।

अंतक सूं “जागै” जिम आगै, जुध करि मुवौ नहीं कोइ जोध॥

स्रोत
  • पोथी : गाडण केसोदास ,
  • सिरजक : गाडण केसोदास ,
  • संपादक : बद्रीदान गाडण ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादमी, नई दिल्ली। ,
  • संस्करण : प्रथम