सूणे हरामी खोर रि कथांमदेर नी महासुर,

चूरू भूप उरां सत्र हेक लींग नाथ।

चमू भो फेरली लोह लाट रूपी बोध वाळां,

आठ पोरां बिच चूरू घेरली अमाप॥

अघाया राड़ का वे नी आहुडै मरेवा आंठै

भुजके चंडिका पत्रां भरे वाभै राज।

धरेवा अछरां भडो दाकले वाजेण वांरो,

हाकले पेमजीह लोक रै वा हे राज॥

लोभी पिता थान लाग उरा टांघणी रा वाला

साल ले दणी वालां वंसी महा सुर।

आहंसी भुव के लगां पंच रु अणीर वाला

पांडी सावणी वालां वागा बरा पूर॥

धसेग्यो द्रोण ज्यूं ज्वान असी प्रेम फूल धारा

नाद वीणा थेडे मुनीह सैग्यो निराट।

साल झंटा मेल जंगावणी राल सेग्यो साथ

वसेग्यो पेमजी, सुरां लोक धारवाट॥

उछाह नूं राणा भड़ां तेज पूजा रूप ओपै

वरेवां उछरां वृदा हुं राणा वा दीत।

जंगाल खमेण जाडांथं भा मैड राणां जठै

आभां झोक लागै तोनै सुराणा आदीत॥

इसड महेस रोसड तेरा साझवे आचां

भिड़ेवा अभंगां सत्रां जंग मैं भजाय।

वले चूरू हूंत वाजा फतै रा बजाय॥

स्रोत
  • पोथी : भारतीय साहित्य रा निरमाता- सिंढायच दयालदास ,
  • सिरजक : दयालदास सिंढायच ,
  • संपादक : गिरिजाशंकर शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम