लियण भरथपुर थाय एकठ फिरंग आयलग ,जाय तोयां निकट लाय जूपी।

वाहि खग धाय दल बदलां बिखेरै ,राय जसवंत दिखण वाय रूपी॥

वलोवल तूरठ हमकै मही चलविचल , आतसां झल प्रबल ढंके असमाण।

अनल दिखणाद रा महावल जसा अग्र ,गया उड़ प्रघल दल सबल फिरगाण॥

बजदुरग खिसारा तबल सारा गोरां बजे ,दहल पुड रसारा हलहमल दुंद।

लंक दिस प्रभंजण सारा बेग लागा ,विलायत दिसारा उड़े घणा व्रंद॥

मुणै अंग्रेज़ दुघटा जटा मरहटा ,झले किम जुवपठा छटा घट झाट।

यम जसा दिखणरा पवन विकट अगै ,थटै नह कदे फिरंगी घटा थाट॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी साहित्य सम्पदा ,
  • सिरजक : चैनकर्ण सांदू ,
  • संपादक : सौभाग्य सिंह शेखावत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य संगम, बीकानेर। ,
  • संस्करण : प्रथम