नर निरहारी झंभ निकलंकी, अनंत अनंत गुर एक अछै।

पणमिया जके नर पारि पहुंचिसी, पांत्रीयल नर रोयसी पछै॥

एकलवाई थलासिर ऊभो, केवल ग्यांन कथै करतार।

सुरग देवण आयो सुचियारा, विसंन जंपो दसवें अवतार॥

त्रिखा नींद खुध्या तिस नांहि, जोवो भगतौ आलिंगार।

आदि विसन संभराथल आयो, लंक तणौ गढ़ लेवणहार॥

खेड़या बंदर रीछ हकीकत, पथरे जल कजी पाजा पाज।

अगन खुध्या तिस नींद नै गंज्यो, रावण खुध्य रोड़वण राज॥

रोवड़िया राकस दत महा रिण, कौन लहै करतार कलै।

त्रकट कोट नै तैथ कणि सीता, बाली सो आवियो बले॥

आई लहरी समंद री, लोका बूठो छै तै वाहयौ।

वारो वारि लभिसी प्राणी, रतन काया रो दावौ॥

कान्हो कहै सुंणौ कांने कथ, अवगति गुर मांहरो अछै।

बीकाण देस विसन जी प्रगट्यो, परम गुरु परसियां पार पछै॥

स्रोत
  • पोथी : पोथो ग्रंथ ज्ञान ,
  • सिरजक : कान्होजी बारहठ ,
  • संपादक : कृष्णानंद आचार्य ,
  • प्रकाशक : जांभाणी साहित्य अकादमी, पुरस्कार ,
  • संस्करण : प्रथम
जुड़्योड़ा विसै