प्रथम पूछूं कर जोड़ ने बातडी पुरन्दर, वसुधा तुज्झ विन कोय बीजो।

कोपियो मरुमें आज किण कारणै, देवपत खुलासों भेव दीजौ॥

पोढियो नचींतो आप हुय पाधरों,राजवी आज किन काज रूठो।

काळ री झाळ में मोनखो कलहले, वसुधा छान्ट नी मेह बूठो॥

छीनली छटा पड़ काल मरूछिति री, प्रीतिरी आज कुण बात पाले।

आखे सह आजरा इन्द्र अनीति री, करी मनचिती री बात काले॥

सूखगी सबी मन हारने सरीता, रीछ अलूकड़ा देख रोवे।

मोरीया कूकड़ा मरूरा मानवी, झूरे खड़ रुंखड़ा बाट जोवे॥

आँधियां अहरनिस आयने ऊंमडै़, बैढंगी भूमंण्डे पवन बाजे।

उड्गण रातरा लगे अकुलावता, स्वार रा नाथ विकराल साजे॥

बैद और धालरा भरीजै बारणां, मोंदगी काळ रा रोग मोटा।

बुरा बैहाल दोइ दिसे ब्रिध बालरा, खगां वित ग्वालरा हाल खोटा॥

छगुणौ अगुणौ बूठ हिन्द छावियो, तोय बरसावियो जबर तांई।

इला पिच्छमान में पण नी आवियो, कांणो कहलावियो बात कांई॥

अरचणा मोहन री सुणन्ता आवजो, राज बिगसावजो रिंदरोही।

सुचंगा कूप सर फैर सरसावजो, मेघ बरसावजो देस मोही॥

स्रोत
  • सिरजक : मोहन सिंह रतनू ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी