गीत महाराणा प्रतापसिंघ रौ

 

हाथी बंध घणां घणां हैवरबंध, किसूं हजारी गरब करौ।
पातल रांण हंसै त्यां पुरसां, भाड़ै महलां पेट भरौ॥

सिंधुर किसा किसा तो साहण, सोना किसा किसा सर-सूत।
महा सबळ ले अबळ समापै, राणो कहै कसा रजपूत॥

बाजां किसा किसा त्यां बाजंद, मदझर किसा किसा त्यां माण।
पत गहलोत न गिणै सुपहां, नर ते असुर किसा किसा नर माण॥

सांगाहरा साह अकबर सूं, सिंघ खड़ा कसुं रद-खग खाय।
पत सीसोद न मानै सुपहां, धी त्रिय ले पग लागै धाय॥

स्रोत
  • पोथी : जाडा मेहड़ू ग्रंथावली ,
  • सिरजक : जाडा मेहड़ू ,
  • संपादक : सौभाग्यसिंह शेखावत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी शोध संस्थान, चौपासनी, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
जुड़्योड़ा विसै