छै खंड सहस दस काल छिबतां, ताळ भयानक महासंताप।
राणा पासि गणपति दीठा रिणि, उमया ईस पयंपै आप॥
अंग विणि गज कमल कमल विणि अंग अरि, पात घाइ रिणि ठांहि पडंत।
सुत पंतरण थई तिणि नख सिख, कहीयौ गिर धू गिर धू-कंत॥
सीस गयंद कमध सत्रां चा, सबल निजोड़ि जोड़ि तिणि सारि।
किलबां सेन सिंघ सुत कीधा, उमयानंद तणी उणहारि॥
अनि तन धरे जोड़ि तन अनि अनि, रिम मनि करै न तैंसौं रीस।
सोहीयौ रिणी ऊभौ सीसोदौ, संकर रभ लियै हंस सीस॥