डूबत घर दोय एक घर डोवे, माहव कीनौ ठीक मजौ।

राजावत अवतार गधीरै, यळा रौ अवतार अजौ।

डाकण कोक ठकांणै डोबत, गधौ डुबोवत गादी।

चमरी दोनूं एकण चढ़िया, बीजाँ रहगी बादी।

भैंस सरीखी भांमण भाळौ, ऊँठ सरीखौ अजियौ।

बनड़ौ बनड़ी जोड़ बणेगी, कोय रहियौ कजियौ।

करता पुरस भूलै कांई, ठब रा कांम ठबोवै।

आलणिया वड बोई ईसर, दूजां नांज डुबोवै॥

स्रोत
  • पोथी : दरजी मयाराम री बात ,
  • सिरजक : बुधजी आशिया ,
  • संपादक : शक्तिदान कविया