रांमण रै लंक जिसौ गढ़ रहवा, खतम समंद रो खाई।

मेघनाद सौ कुँवर मारकौ, भलौ कुंभ सो भाई।

तीनूं लोक धूजता तिणसूं, देव सको डंड देता।

ससह,सूर पवन, इंद्र सरखा, करता बिंदगी केता।

रांमचंद रै कुटी रहण नै, भाई लखण भुजाळौ।

लसकर लोक नहीं छै लारै, अतरौ साथ अटाळौ।

रांमण तनि भाळतां राजस, काहूँ भार कुटी रौ।

कीधौ कुटी लंक रौ काळौ, लीधौ जोर लठी रौ।

वांनर, रींछ, लंगूर वडाळा, ससतर रूंख संभावे।

दसरथ सुतन तणा दळ डौढा, अड़िया लंका आवे।

सीतावाळे राखस सबळां, बाळे केतां बोळे।

कण-कण कुटी लंकगढ़ कीधौ, रांमण रौ घर रोळै।

लंका-रींछ, वांनराँ लूटी, निजरां रांमण निरखी।

काला मनख किला कर केई, चढै कैफ री चरखी।

‘बाळकनाथ’ कहै छै बाबा, किलां गरब मत कीजो।

जीती लंका हूंत झूँपड़ी, दिस्ट जिकण पर दीजो॥

स्रोत
  • पोथी : दरजी मयाराम री बात ,
  • सिरजक : बुधजी आशिया ,
  • संपादक : शक्तिदान कविया